The inspiring & untold story Dashrath Manjhi । दशरथ मांझी की प्रेरक और अनकही कहानी
दशरथ मांझी ,को माउंटेन मैन के नाम से जाना जाता हैं , अब क्यों जाना जाता हैं हम जानेगें इस पूरी कहानी को
दशरथ मांझी , वह व्यक्ति जिसने साबित कर दिया कि कुछ भी हासिल करना असंभव नहीं है। उनका जीवन एक नैतिक शिक्षा देता है कि एक छोटा आदमी, जिसके पास न पैसा है और न ताकत है, वह एक शक्तिशाली पहाड़ को चुनौती दे सकता है। विशाल पर्वत को तराशने के लिए मांझी का दृढ़ संकल्प एक मजबूत संदेश देता है कि अगर कोई अपने लक्ष्य पर दृढ़ नजर रखता है तो हर बाधा को पार किया जा सकता है।
दशरथ माँझी का जन्म 14 जनवरी 1929 को हुआ था। वह बिहार में गया जिले के करीब गहलौर गाँव के निवासी हैं। वह एक गरीब मजदूर थे। वह धनबाद की कोयला की खदान में काम करते थे।
संघर्षमय जीवन रहा गहलौर गाँव के लोगों का
दशरथ माँझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे। वह आदिवासी (ST) जाति के थे । लेकिन इनके द्वारा किया गया कार्य इतिहास में अमर हो गया। गहलौर गाँव के निवासियों को अगर पास वाले कस्बे से कुछ भी काम पड़ता था , तो उनके लिए एक पूरे पहाड़ को पार करना पड़ता था। ना ही गहलौर गाँव में पानी की व्यवस्था थी और ना ही बिजली की।
सन 1956 में दशरथ मांझी ने फाल्गुनी देवी से शादी की
जिसने रास्ता रोका, उसे ही काट दिया
गहलौर और अस्पताल के बीच खड़े जिद्दी पहाड़ की वजह से साल 1959 में उनकी बीवी फाल्गुनी देवी को वक़्त पर इलाज नहीं मिल सका और वो चल बसीं। पत्नी के चले जाने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया। लेकिन यह आसान नहीं था।
मांझी ने अपने गांव को और अधिक सुलभ बनाने के लिए पहाड़ को काटकर 110 मीटर लंबा, 7.7 मीटर गहरा और 9.1 मीटर चौड़ा रास्ता बनाया। दशरथ मांझी का उद्देश्य था कि उनकी गांव वालों को चिकित्सा देखभाल तक आसानी से पहुंच सके।
उन्होंने कहा, "जब मैंने पहाड़ी पर हथौड़ा मारना शुरू किया, तो लोगों ने मुझे पागल कहा, लेकिन इसने मेरे संकल्प को मजबूत कर दिया।"
हालांकि मांझी के प्रयासों के लिए उनका मजाक उड़ाया गया, लेकिन उन्होंने गहलौर गांव के लोगों का जीवन आसान बना दिया है। बाद में, मांझी ने कहा, "हालांकि अधिकांश ग्रामीणों ने पहले मुझे ताना मारा, लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने बाद में मुझे खाना देकर और मेरे मेरे हथियार खरीदने में मेरी मदद करके मेरा समर्थन किया।"
1960 से दशरथ मांझी मैं पहाड़ पर और हथोड़े से वार किया और 22 साल बाद 1982 में उनकी मेहनत रंग लाई। इस रास्ते ने गया जिले के अत्री और वजीरगंज सेक्टरों के बीच की दूरी को 55 किमी से घटाकर 15 किमी कर दिया। पहाड़ को
दुनिया से चले गए लेकिन यादों से नहीं
17 अगस्त 2007 को पित्ताशय(गॉल ब्लैडर) के कैंसर से पीड़ित माँझी का 78 साल की उम्र में निधन हो गया था। दशरथ मांझी का इलाज अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में चल रहा था। बिहार की राज्य सरकार के द्वारा इनका अंतिम संस्कार किया गया। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहलौर में उनके नाम पर 3 किमी लंबी एक सड़क और हॉस्पिटल बनवाने का फैसला किया था।
केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया।
साल 2007 में जब 78 वर्ष की उम्र में वो जब दुनिया छोड़ गए, तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों को सबक सिखाती रहेगी।
बन चुकी है फिल्म दशरथ मांझी के जीवन पर
- 2015 में फिल्म डायरेक्टर केतन मेहता ने 'मांझी : द माउंटेन मैन' के नाम से दशरथ मांझी की लाइफ और लव स्टोरी पर फिल्म बनाई थी।
- दशरथ मांझी का रोल नवाजुद्दीन सिद्दिकी और उनकी पत्नी फगुनी की भूमिका राधिका आप्टे ने निभाई थी। इस फिल्म की 85 फीसदी शूटिंग गहलौर घाटी में हुई थी।

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