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| "हवा में मौजूद ऑक्सीजन और सिलेंडर वाले ऑक्सीजन में अंतर है |
दोस्तों कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने पूरे देश में तबाही मचा के रखी है, या यूं कहें कि सरकार की पूरी तैयारियों की पोल खोल कर रख दी है। देश के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कोरोना से संक्रमित मरीजों को दवाई से लेकर ऑक्सीजन और बेड जैसी विभिन्न प्रकार की समस्या से जूझना पड़ रहा है। अभी वर्तमान में ऑक्सीजन को लेकर हालात बहुत खराब चल रहे हैं। सभी राज्यों में ऑक्सीजन को लेकर मारामारी मची हुई है। इसके चलते दवाओं से लेकर ऑक्सीजन तक सभी की कालाबाजारी जमकर हो रही है। अब आप लोगों के मन में एक सवाल आ रहा होगा कि जब ऑक्सीजन से हमारे चारों ओर उपलब्ध है तो उसे ऑक्सीजन को भरकर सिलेंडर में मरीज को क्यों नहीं दे देते हैं। इसके अलावा एक और सवाल आपके दिमाग में आ रहा हुआ कि जो सिलेंडर में ऑक्सीजन दी जाती है वह हमारे वातावरण में उपलब्ध ऑक्सीजन से कैसे अलग होती है। आज हमारी इस पोस्ट में हम आपको इसी विषय पर जानकारी दे रहे हैं।
Oxygen Vs Medical Oxygen
विशेषज्ञ बताते हैं कि हवा में मौजूद ऑक्सीजन को फिल्टर की मदद से एक विशेष प्रक्रिया के जरिये मेडिकल ऑक्सीजन तैयार की जाती है इस प्रोसेस विज्ञान की भाषा मे क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रोसेस कहा जाता है। इस प्रक्रिया में कई चरणों में बाताबरण में उपलब्ध हवा को कंप्रेशन के जरिेये मॉलीक्यूलर एडजॉर्बर से फ़िल्टर करते हैं। जिसके बाद हवा में मौजूद पानी के कण से कार्बन डाई ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन को अलग कर दी जाती है। इसके बाद कंप्रेस्ड हवा हीट एक्सचेंजर टरबाइन से गुजारा जाता है, और ठंडा किया जाता है।
डिस्टिल्ड प्रक्रिया कैसे होती है?
डिस्टिल्ड प्रक्रिया में सबसे पहले पानी को उबाला जाता है और उसकी भाप को एक बड़े कनटेनर में इकट्ठा किया जाता हैं। इसके बाद अलग अलग स्टेज में इस क्रिया को दोहराया जाता है जिससे बाद इसमें से अलग अलग गैस जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और अन्य गैसें अलग हो जाती है। फिर इसके बाद हमे लिक्विड ऑक्सीजन गैस मिलती है। फिर इस ऑक्सीजन को सिलेंडर में भरकर कंपनियां मार्केट में बिक्री के लिए पहुचती हैं।
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| Oxygen Vs Medical Oxygen |
इस ऑक्सीजन का उपयोग खास तौर पर अस्पताल में मरीजो के लिए किया जाता है। ऐसे मरीजों के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है जिन्हें हार्ट अटैक, ब्रेन हैब्रेज हुआ है या कोई बड़ी दुर्घटना के चपेट में आने से ऑपरेशन करने की जरूरत हो। अब वर्तमान में कोरोना काल में इसका उपयोग कई गुना अधिक बढ़ चुका है। इसके अलावा स्टील, पेट्रोलियम इंड्रस्ट्रीज आदि में भी इस ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है।
हवा में मौजूद ऑक्सीजन और सिलेंडर वाले ऑक्सीजन में अंतर है ?
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| मेडिकल ऑक्सीजन क्या है और कैसे बनती है? |
एक आम धारणा यह है कि हम अपने वातावरण में 100% ऑक्सीजन सांस ले रहे हैं। यह सच नहीं है। हम जिस हवा में सांस लेते हैं वह लगभग 21 प्रतिशत ऑक्सीजन और 78 प्रतिशत नाइट्रोजन है। इसके अलावा 1% कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन जैसी अन्य गैसों का मिश्रण भी है। जबकि सिलेंडर में उपलब्ध ऑक्सीजन में 98% शुद्ध ऑक्सीजन होती है।
देश में मेडिकल ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता और मांग क्या है?
पिछले साल COVID-19 के प्रकोप से पहले राष्ट्रीय मांग लगभग 700 मीट्रिक टन / दिन थी। यह पिछले वर्ष COVID-19 के पहली लहर में 2,800 मीट्रिक टन / दिन तक बाद गयी थी और वर्तमान में दूसरी लहर के आने से लगभग 5500 मीट्रिक टन / दिन की मांग का अनुमान बताया जा है।
मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन की आपूर्ति को कौन नियंत्रित करता है?
चिकित्सा ऑक्सीजन की आपूर्ति वर्तमान में उद्योग और आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने के लिए विभाग में सचिव की अध्यक्षता में द्वारा केन्द्र द्वारा निगरानी की जा रही है। जिसमे सभी प्रमुख ऑक्सीजन निर्माताओं, अखिल भारतीय औद्योगिक गैस विनिर्माताओं के संगठन (AIIGMA), पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO), सड़क परिवहन मंत्रालय और भारतीय रेलवे के प्रतिनिधियों के साथ-साथ सभी राज्यों से सदस्य नामित किए गए हैं। । इसका गठन मार्च 2020 में किया गया था।



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