The History Of Blue Colour - नीले रंग का इतिहास
एक ऐसा रंग जिसने इंसानो को हजारों सालों से अपनी ओर आकर्षित किया था। जो रंग आज प्राचीन शिल्पकलाओं से लेकर गुफाओं की दीवारों पर निकाली गई पेंटिंग्स में भी प्रमुख रूप से दिखाई देता है ये रंग है ब्लू यानी नीला रंग।
हजारों साल पहले इंसान रंग बनाने के लिए प्राकृतिक स्रोतों का इस्तेमाल करते थे। लेकिन नीले रंग की विशेषता ये थी कि इस रंग का एकमात्र प्राकृतिक स्रोत था एक ऐसा पत्थर जो उस वक्त केवल भारत में ही मौजूद था। ये पत्थर था Lapislazuli (लपिसलाजुली) जो पाया जाता था गान्धार में , जो आज के अफगानिस्तान के बदाक्शिन नाम के पहाड़ों में मौजूद सर-ए-संग नामक घाटी में।
कभी इस पत्थर से बनाया रंग आभूषणों में इस्तेमाल किया गया, तो कभी इसका उपयोग तस्वीरों में रंग भरने के लिए किया गया। आपको आश्चर्य होगा कि नीले रंग का एकमात्र प्राकृतिक स्रोत सिर्फ लपिसलाजुली नाम का ये नीला पत्थर ही था, और इसीलिए उस समय इस पत्थर की कीमत सोने से भी ज्यादा हुआ करती थी। चाहे दुनिया की कोई भी सभ्यता हो, सारी सभ्यताओं के शुरुआती दौर में इंसानो को केवल 3 रंगों के बारे में ही पता था। काला, सफेद और लाल। बाकी रंगों के बारे में पता चलने में इंसानों को काफी समय लगा।
आपको जानकर हैरानी होगी 8 वीं सदी में लिखी गयी प्राचीन ग्रीक की महान काव्य रचना ओडिसी का जब अध्ययन हुआ तो ये बात सामने आयी कि इस काव्य रचना में काले रंग का 200 बार उल्लेख किया गया था सफेद रंग का करीब 100 बार लाल रँग 15 बार हरे और पीले रंग का सिर्फ 7 बार और नीले रंग का एक बार भी नहीं। इसका मतलब ग्रीस जैसे देशों ने 8 वीं सदी तक शायद नीले रंग का इस्तेमाल ही न किया हो।
इस लपिसलाजुली पत्थर का इस्तेमाल सबसे पहले इस्तेमाल किया गया था भारत में सिंधुघाटी सभ्यता के लोगों द्वारा। सिन्धुघाटी सभ्यता के लोगो के व्यापारिक जीवन में इस पत्थर का काफी बड़ा स्थान था। खोजकर्ताओं को इस बात के सबूत मिले हैं कि सिंधुघाटी सभ्यता के लोग समुद्र मार्ग से अंतरराष्ट्रीय व्यापार किया करते थे। और काफी मात्रा में चीजो का यहाँ से निर्यात किया करते थे। उन चीजों में लपिसलाजुली नाम का ये पत्थर भी हुआ करता था। आज के अफगानिस्तान की घाटियों में मिलने वाला ये पत्थर सिन्धुघाटी सभ्यता ने ही पूरी दुनिया में पहुँचाया था।
मेसोपोटामियन सभ्यता में मिले कई अवशेषों में इस रंग का भरपूर इस्तेमाल देखने को मिलता है। प्राचीन सुमेरियन और इजिप्टियन सभ्याताओं के राजा और रानियाँ अपने चेहरे का मेकअप करते वक्त नीले रंग का इस्तेमाल किया करते थे।
आपने जरूर प्राचीन इजिप्ट के राजा या रानियों के मूर्तियों में नीले रंग के eyeliner को देखा होगा। उस समय भारत से बाहर जाने वाला ये पत्थर इजिप्शियन लोगों के लिए सोने से भी महँगा हुआ करता था क्योंकि इस पत्थर से मिलने वाला नीला रंग उनके पवित्र नदी नील नदी का रंग था। इसलिए धार्मिक अनुष्ठानों चित्रों कपड़ों और यहाँ तक की कब्रों में भी इस नीले रँग का इस्तेमाल किया जाता था।
प्राचीन इजिप्ट की प्रसिद्ध रानी नेफर्टीटी के मुकुट पर नाइल नदी की निशानी के तौर पर नीला रंग हुआ करता था जो लपिसलाजुली से ही बनाया जाता था। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया इजिप्शियन लोगों ने उनके लिए काफी जरूरी इस नीले रंग को कुछ केमिकल का इस्तेमाल करके आर्टिफिशियल रूप से बनाना शुरू किया। क्योंकि सोने से भी महंगे इस रंग को भारत से खरीदना उनके लिए थोड़ा मुश्किल हुआ करता होगा। उनके द्वारा बनाया गया रंग थोड़ा फीका था और ये अंतर इजिप्ट के पेंटिंग्स में साफ देखने को मिलता है। लेकिन बाद में पूरे इजिप्ट में इसी रंग का इस्तेमाल होने शुरू हुआ। इस रंग को आज के शोधकर्ता इजिप्टियन ब्लू नाम से जानते है।
तो इस तरह इजिप्शियन ब्लू (Egyptian blue) इंसानों द्वारा बनाया गया सबसे पहला आर्टिफिशियल रंग था। भले ही नीले रंग का अल्टरनेटिव रंग आ गया था। लेकिन फिर भी जिन लोगों को रंगों की अच्छी समझ थी उन लोगों ने भारत से मिलने वाले इन नीले रंग का ही इस्तेमाल करना शुरू रखा।
बाद में लियोनार्डो दा विंची जैसी कई प्रसिद्ध यूरोपियन चित्रकारों ने भी इस पत्थर का उपयोग किया था। तो इस तरह वो भारत देश ही था, इस देश के सिन्धुघाटी सभ्यता के ही वे लोग थे जिन्होंने पूरी दुनिया को पहली बार प्राकृतिक नीला रँग दिया था। क्या इसके पहले आपको ये बात पता थी , कमेंट करके ज़रूर बताए ।

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