हजार सालों से बिना किसी नींव के खड़े इस मंदिर के हैरान कर देने वाले आश्चर्य। mysteries of brihadeshwara temple

तंजौर मन्दिर


आज हम आपको एक ऐसे विशाल मंदिर के बारे बताने जा रहे हैं जो दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जो पूरी तरह से ग्रेनाइट से बना है और इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि इस मंदिर के 100 किमी के अन्दर न कोई पहाड़ है और न ही ग्रेनाइट। बाहर से देखने पर ये मन्दिर आपको भारत के किसी अन्य मंदिर जैसा ही लगेगा लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि ये मंदिर बिना किसी नींव के बना है। यानी सीधा जमीन पर बना है। और जैसा रैंप इजिप्ट के पिरामिड को बनाने के लिए तैयार किया गया था ठीक वैसा ही रैंप इस मंदिर को बनाने के लिए तैयार किया गया था। 


हम बात कर रहें हैं , तमिलनाडु के Thanjavur शहर में स्थित यह बृहदेश्वर मन्दिर भारत के विशाल और सबसे अनोखे मंदिरों में से एक है। इसे तंजौर के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

बृहदेश्वर मन्दिर का निर्माण किसने करबाया
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर को राजा राज चोला प्रथम ने 1010 AD में बनवाया था । चोल राजाओं ने लगभग 450 सालों तक तन्जावुर पर राज किया है। इस मन्दिर का हर एक हिस्सा भव्य है। उनके नाम पर ही इसे 'राजराजेश्वर मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है।

Image Source : Patrika

चाहे इसका विमान अर्थात टॉवर हो, शिवलिंग हो या एक ही पत्थर से बना नंदी। इसमें मौजूद शिवलिंग एक ही पत्थर में बनाया हुआ नंदी। इस मंदिर के विमान यानी टावर की ऊँचाई 215 फ़ीट है। मतलब करीब 15 मंजिला ऊँची। कहा जाता है कि भगवान शिव के घर कैलाश पर्वत को प्रदर्शित करने के लिए इस विमान को 15 मंजिला ऊँचा बनाया गया था। लेकिन आज से हजार साल पहले 215 फ़ीट ऊँचा विमान आखिर कैसे बनाया गया होगा ?

 यह सवाल इस मन्दिर को देखने वाले हर व्यक्ति के मन में आता है। इस मन्दिर को बनाने के लिए 1 लाख 30 हजार टन का ग्रेनाइट पत्थर का इस्तेमाल किया गया। उस समय तन्जावुर में ग्रेनाइट मौजूद नहीं होता था। ऐसे में इतने भारी भरकम पत्थरों को यहाँ से 60 किमी दूर बसे त्रिचनापल्ली से लाया गया था। 


मन्दिर का निर्माण हुआ था वास्तु शास्त्र  के नियमों के अनुसार
इस मन्दिर का निर्माण वास्तु शास्त्र के सारे नियमों को ध्यान में रखकर किया गया है। भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार कई अलग अलग आकार भिन्न भिन्न वस्तुओं को प्रदर्शित करते हैं । जैसे चक्र पूर्णता को तो वही चौरस आकर आकाश को दर्शता है इसलिए ऐसे आकृतियों का इस्तेमाल भारत के लगभग सारे प्राचीन मन्दिरों में देखने को मिलता है। 

जिस समय में इस मंदिर का निर्माण हुआ था उस समय के हिसाब से इतना भव्य और वास्तु शास्त्र के अनुसार मन्दिर बनाना आसान नहीं था। लेकिन भारत में कोई भी प्राचीन मन्दिर साधारण नहीं होता था। यहाँ के कुशल वास्तुकारों ने इस मन्दिर निर्माण के काम को पूरा करके दिखाया। इस मन्दिर के विमान अर्थात टॉवर को बनाने के लिये ग्रेनाइट के बड़े बड़े ब्लॉक्स बनाये गए और उन्हें एक के ऊपर एक रखा गया। ऐसा तब तक किया गया जब तक कि पिरामिड का आकार न बन जाये। 


इस विमान की एक और हैरानी वाली बात ये है कि इस विमान पर जो शिल्पकला बनायी गयी है वो ग्रेनाइट ब्लॉक्स को रखने के बाद उतनी ऊँचाई पर ही बनाई गई थी। 



दूसरा सबसे बड़ा सवाल कि इस मन्दिर का इतना विशाल और वजनदार कलश ऊपर तक पहुँचा कैसे ? इसके पीछे भी एक हैरान कर देने वाली कहानी है, जो हमारे भारत के उन्नत वास्तुशैली को दर्शाती है। इस 80 टन के कलश को ऊपर रखना सबसे बड़ी चुनौती थी। इस मन्दिर का कलश सिर्फ एक पत्थर को तराश के बनाया गया था। उस जमाने में जब कोई क्रेन नहीं हुआ करता था तब इस कलश को इतने ऊपर कैसे ले जाया गया होगा। 

कहा जाता है कि इस कलश को ऊपर पहुँचाने के लिए करीब 6 किलोमीटर का रैंप बनाया गया था । जिसके जरिये मजदूर और हाथियों की मदद से इस कलश को मंदिर के ऊपर तक पहुँचाया गया था। इस मन्दिर की खासियत यहीं तक सीमित नहीं है एक और बात है जो हमें हैरान कर देती है और वो है यहाँ की नंदी जो एक ही बड़े पत्थर को तराश कर बनाई गई है जिसकी ऊँचाई है 13 फ़ीट।

 लेकिन दुनिया की सारी प्राचीन रचनाएँ भारतीय मन्दिरों के सामने फीकी हैं। ये मन्दिर हजार सालों के बाद भी उसी भव्यता के साथ खड़ा है जैसा कि इसे बनाने वाले लोगों ने इसे खड़ा किया था। और इस मन्दिर की इन्ही खासियतों की वजह से ये मन्दिर वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल है। इस मन्दिर की मजबूती का एक कारण ये भी है कि यहाँ पत्थरों को जोड़ने के लिये किसी भी तरह का सीमेंट या ग्लू का इस्तेमाल नहीं किया गया था बल्कि इसके निर्माण में इंटरलॉकिंग मैकेनिज़्म का इस्तेमाल किया गया था।

आज के समय में अगर ऐसा मन्दिर बनाना होगा तो उसके लिए कई भारी भरकम और एडवांस मशीन का इस्तेमाल करना पड़ेगा, लेकिन हजारों साल पहले बिना किसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके ऐसा आश्चर्य खड़ा किया कि जिसके सामने ताजमहल भी फीका है। क्या आप इस बात से सहमत हैं ?

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