आज हम बात करेंगे सूर्य का दूसरा सबसे निकट ग्रह शुक्र (Venus) ग्रह के बारे में। पृथ्वी से शुक्र ग्रह पर पहुँचने के लिए केवल 100 दिन का समय लगता हैं, लेकिन फिर भी ये एक ऐसा ग्रह है जहाँ कोई भी एस्ट्रोनॉट जाना नहीं चाहेगा, और न ही दुनिया की कोई स्पेस एजेंसी किसी इंसान को वहाँ भेजना चाहेगी।
अगर देखा जाए तो शुक्र ग्रह को पृथ्वी का सिस्टर प्लेनेट (Sister Planet) कहा जाता है क्योंकि पृथ्वी और शुक्र का shape और उनका composition लगभग एक जैसा ही है।
शुक्र ग्रह चंद्रमा के बाद रात के समय आकाश में सबसे अधिक चमकीला ग्रह है। Venus Planet को यह नाम प्रेम और सुंदरता की देवी (रोमन देवी) के नाम पर दिया गया है ।
शुक्र ग्रह हमारे सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है। और इस ग्रह पर दिन भी काफी लंबा होता है। यहाँ का एक दिन पृथ्वी के एक साल से भी बड़ा होता है। शुक्र ग्रह के वातावरण में 96% कार्बन डाइऑक्साइड 3% नाइट्रोजन है और 1% से भी कम कार्बन मोनोऑक्साइड ( Carbon Monoxide ) , आर्गन ( Argon ) और सल्फर डाई ऑक्साइड ( Sulphur Dioxide ) मौजूद हैं।
शुक्र ग्रह का कोई उपग्रह (Satellite) [चन्द्रमा] नहीं है और न ही इस ग्रह पर शनि गृह (Saturn ) की तरह वलय ( Ring ) है ।
माना जा रहा था कि शुक्र ग्रह पर जीवन मौजूद होगा
पहले ऐसा माना जा रहा था कि शुक्र ग्रह हमारे पृथ्वी जैसा ही होगा और वहाँ भी पृथ्वी की तरह जीवन मौजूद होगा। लेकिन वर्ष 1970 और 1982 के बीच सोवियत यूनियन (Soviet Union) ने शुक्र ग्रह पर 8 spacecraft उतारे और इस ग्रह का खतरनाक रूप सबके सामने आया। उन 8 spacecraft में से सिर्फ एक ही spacecraft 110 मिनट तक टिक पाया था। उसके बाद दुनिया के किसी भी अंतरिक्ष एजेंसी ने शुक्र ग्रह पर अपना spacecraft उतारने की हिम्मत नहीं की।
लेकिन वहाँ ऐसा क्या है और क्या होगा अगर हम किसी इंसान को शुक्र ग्रह पर उतारने की कोशिश करेंगे ?
शुक्र ग्रह पर मौजूद हैं सल्फर डाईऑक्साइड ( Sulphur Dioxide ) के बादल
अगर हम किसी एस्ट्रोनॉट को शुक्र ग्रह पर भेजते हैं तो वहाँ तक पहुँचना तो आसान है लेकिन वहाँ लैंडिंग के लिए जगह ढूँढना काफी मुश्किल है। शुक्र ग्रह का वातावरण जहरीले सल्फर डाईऑक्साइड के बादलों से घिरा हुआ है। वातावरण में सल्फरडाई आक्साइड की मात्रा ज्यादा होंने कि वजह से यहाँ हमेशा सल्फ्यूरिक एसिड की बारिश होती रहती है।
यहाँ पर हवा 220 किमी प्रतिघण्टे की रफ्तार से बहती है। ऐसे में किसी स्पेसक्राफ्ट को वहाँ लैंड करने के लिए जगह ढूँढना मुश्किल है। इसके बावजूद अगर स्पेसक्राफ्ट लैंडिंग के लिए सतह की तरफ बढ़ेगा तो उसे 600°F के temperature का सामना भी करना पड़ेगा। और हवा का दबाव ( Pressure) पृथ्वी की तुलना में 90 गुना ज्यादा होगा। इतना सब झेलने के बाद अगर यान सतह पर लैंड हो भी गया तो सतह के 460℃ का तापमान यान को पिघला देगा।
लेकिन फिर भी अगर कोई यान यहाँ उतरने में भी कामयाब रहा तो किसी एस्ट्रोनॉट को यान से बाहर निकल कर इसकी सतह पर काम या एक्सपेरिमेंट करना मुश्किल होगा। क्योंकि इस ग्रह के बादल पर पड़ने वाली 90% सूरज की रोशनी रिफ्लेक्ट हो जाती है, जिसकी वजह से यहाँ सतह पर काफी अंधेरा रहता है। शुक्र ग्रह का वातावरण ग्रीन हाउस गैसों से बना है। जिनमें मुख्यतः कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद है जो सूर्य से आने वाले गर्मी को पकड़े रहता है जिससे शुक्र के सतह के तापमान लगभग 460℃ हो जाता है।
शुक्र ग्रह पर पहुँचने के लिए बनेगा टाइटेनियम (Titanium ) से स्पेससूट
फिलहाल तो कोई ऐसा स्पेससूट नहीं बना जिससे इतने ज्यादा तापमान में काम किया जा सके। लेकिन वैज्ञानिक ऐसा स्पेससूट बनाने में लगे हैं जो इतना ज्यादा तापमान झेल सकेगा और ये स्पेससूट टाइटेनियम से बना होगा।
हमारे पृथ्वी की अपनी मैग्नेटिक फील्ड है जो एक सुरक्षा कवच का काम करती है और हार्मफुल कॉस्मिक रेडिएशन से हमें बचाती है। लेकिन शुक्र ग्रह के पास ऐसी किसी प्रकार की कोई मैग्नेटिक फील्ड नहीं है, जिसकी वजह से यहाँ उतरे एस्ट्रोनॉट्स को हाई एनर्जी कॉस्मिक रेडिएशन का सामना करना पड़ेगा, जो उनके स्पेससूट के अंदर जा कर उनके शरीर में काफी गंभीर बीमारियाँ पैदा कर सकता है। तो ये होगा अगर किसी एस्ट्रोनॉट ने शुक्र ग्रह पर लैंडिंग करने की कोशिश की।

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