रानी की वाव। Rani ki vav in hindi

रानी की वाव का इतिहास - Rani ki vav History


Rani ki vav in hindi



दुनिया भर में हमे ऐसी कई रचनाएँ देखने को मिल जाती हैं जिन्हें एक राजा ने अपनी रानी की याद में बनवाया ,इसका सबसे अच्छा उदाहरण है ताज महल , लेकिन क्या आप एक ऐसी अद्भुत रचना के बारे में जानते हैं जिसे एक रानी ने अपने राजा की याद में बनवाया था। 


हम आज आपको 11 वीं सदी में बना एक ऐसे स्मारक के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका चित्र RBI द्वारा 100 के नए नोटो पर छापा जा रहा हैं । यह स्मारक खूबसूरत और अद्भुत होने के साथ साथ आधुनिक इंजीनियरिंग को चुनौती देने का का काम भी करता है।


हम बात कर रहे हैं स्मारक रानी की वाव की। जो गुजरात के अहमदाबाद से 140 किमी दूर पाटन गाँव में मौजूद है। पाटन सोलंकी साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। 



सबसे पहले हम जान लेते हैं कि वाव का मतलब क्या होता हैं ?
वाव यानी बावड़ी जो एक सीढ़ीनुमा कुँआ होता है। इस बावड़ी का निर्माण रानी उदयमती ने अपने पति राजा भीमदेव की याद में 11वीं सदी में करवाया था। राजा भीमदेव सोलंकी साम्राज्य के संस्थापक और एक पराक्रमी राजा थें जो पृथ्वीराज चौहान के मित्र थे और उन्होंने कई बार मुहम्मद गौरी को बुरी तरह हराया था । यहाँ तक कि उनके बाद रानी उदयमती ने भी गौरी को बुरी तरह पराजित किया था।

रानी की वाव बावड़ी 7 मंजिला है । 7 मंजिले होने का कारण मनुष्य के शरीर में मौजूद 7 चक्रों से है।


इस बावड़ी की लम्बाई 70 मीटर , चौड़ाई 23 मीटर और गहराई 28 मीटर है। ये रानी की वाव  सबसे ज्यादा अलंकृत और अद्वितीय शिल्पकला का नमूना है। इसके हर मंजिल पर उच्च कलाकृतियों का निर्माण किया गया है। यहाँ करीब 1000 शिल्पकलाएँ मौजूद हैं। जो मुख्यतः भगवान विष्णु और उनके अवतारों पर आधारित है। इन मूर्तियो की चमक आज इतने सालों बाद भी बरकरार है। ऐसा लगता है मानो इन्हें अभी अभी तराशा गया है। 



इस बावड़ी की समय में खो जाने का और फिर से खोजे जाने का एक अनोखा किस्सा है जो लोगो को अचम्भे में डाल देता है। 13वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में कुछ भूमिगत बदलाव हुए और भूमिगत प्लेटों के खिसकने के कारण वो नदी ही विलुप्त हो गयी जिसके किनारे इस बावड़ी का निर्माण किया गया था। उस नदी के लुप्त हो जाने के बाद और वातावरण में बदलाव आने के बाद इस क्षेत्र में भयानक बाढ़ आयी और बाढ़ के बाद पूरा क्षेत्र जमीन के नीचे धँस गया और ये बावड़ी भी धरती के नीचे समा गई। और लगभग अगले 700 सालों तक भूमिगत रही। 

Rani ki vav ka itihas


1955 के दौरान जब कुछ शोधकर्ताओं को ये शंका हुई कि यहाँ नीचे कुछ दबा हुआ था तो ASI ने यहाँ खुदाई शुरू की।
लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था ये बावरी जमीन में इतने अंदर दबी हुई थी कि इसे पूरी तरह से बाहर निकालने के लिए लगभग 40 साल का समय लगा था। ये काम बड़ी ही सावधानी से करना जरूरी था ताकि रेत में दबी मूर्तियों को बाहर निकालने की प्रक्रिया में मूर्तियों को कोई नुकसान न हो। आप सिर्फ सोच कर देखिये ये काम Archeologists ने कैसे किया होगा। 1990 में मतलब लगभग 40 साल के बाद इस बावड़ी को पूरी तरह रेत से बाहर निकाला गया।


 जब समय की रेत को हटा कर ये बावड़ी दुनिया के सामने आई तो इसके रूप ने सबको हैरान कर दिया। इसके पास वाली नदी के विलुप्त होने के कारण इस बावड़ी में आज पानी नहीं है। लेकिन इस बावड़ी में 21 मीटर गहरा कुंआ है जिसमे लगभग 50 साल पहले तक पानी हुआ करता था।


पहले इस बावड़ी के आसपास तमाम तरह के आयुर्वेदिक पौधे थे, जिसकी वजह से रानी की वाव में एकत्रित पानी को बुखार, वायरल रोग आदि के लिए काफी अच्छा माना जाता था। वहीं इस बावड़ी के बारे में यह मान्यता भी है कि इस पानी से नहाने पर बीमारियां नहीं फैलती हैं।



यह विश्वप्रसिद्ध सीढ़ीनुमा बावड़ी के नीचे एक छोटा सा गेट भी है, जिसके अंदर करीब 30 किलोमीटर लंबी एक सुरंग बनी हुई है, जो कि पाटण के सिद्धपुर में जाकर खुलती है। ऐसा माना जाता है कि, इस रहस्यमयी सुरंग पाटन के सिद्धपुर में जाकर खुलती है। पहले इस खुफिया रास्ते का इस्तेमाल राजा और उसका परिवार युद्ध एवं कठिन परिस्थिति में करते थे। फिलहाल अब इस सुरंग को मिट्टी और पत्थरों से बंद कर दिया गया था। इस सुरंगनुमा रास्ते को अब पुरात्तव विभाग ने बन्द कर दिया है। 



इतनी खूबसूरत और अचंभित करने वाली वास्तु को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया है, और इस बावड़ी को यूनेस्को ने भारत में मौजूद सभी बावड़ीयों की रानी का खिताब भी दिया है।

अपनी कलाकृति के लिए मशहूर इस विशाल ऐतिहासिक बावड़ी को साल 2016 में दिल्ली में हुई इंडियन सेनीटेशन कॉन्फ्रेंस में ”क्लीनेस्ट आइकोनिक प्लेस” पुरस्कार से नवाजा गया है।

साल 2016 में भारतीय स्वच्छता सम्मेलन में गुजरात के पाटन में स्थित इस भव्य रानी की वाव को भारत का सबसे स्वच्छ एवं प्रतिष्ठित स्थान का भी दर्जा मिला था ।

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