550 साल पहले बनी वास्तुकला की अद्भुत मिसाल : विजयस्तम्भ Story Behind Great Structure Of Vijaystambh




राजस्थान के राजाओं ने अपने राज्यकाल में एक से बढ़कर एक विशेष और अद्भुत वास्तुकलाओं का निर्माण कराया था जो सुन्दरता व मजबूती में आज के आधुनिक इमारतों से भी कही ज्यादा आगे है। राजस्थान अद्भुत किलो और भव्य महलों से सजा है। आज हम आपको एक ऐसी ही अद्वितीय वास्तु के बारे में बतायेंगे जिसने राजस्थान के चित्तौड़गढ़ को विश्व स्तर में पहचान दिलाई है।

चित्तौड़गढ़ का किला भारत का सबसे लम्बा किला है। ये किला 700 एकड़ में फैला है और जमीन से 500 फीट ऊँचें पहाड़ी मैदान पर बनाया गया है। ये किला सदियों से राजपूतों की शान का प्रतीक माना गया है। और इसीलिए 'विजयस्तम्भ' को भी यहीं बनाया गया था। लेकिन 9 मंजिला ऊँचा और 37 मीटर लम्बा ये विजयस्तम्भ कोई आम इमारत नहीं है बल्कि इसका निर्माण एक खास उद्देश्य से और एक खास घटना के बाद किया गया था।

बात सन 1435 में महाराणा कुम्भा ने नागौर को आक्रान्ताओं से छुड़ा कर अपने राज्य में शामिल कर लिया। इस बात से गुजरात और मालवा पर कब्जा किये बैठे महमूद खिलजी और कुतुबुद्दीन इस बात से काफी चिढ़ गए। महाराणा कुम्भा के इस बढ़ते रुतबे को देख कर इन दोनों ने आपस में हाथ मिला लिया और महाराणा कुम्भा के खिलाफ खड़े हो गए। दोनों की विशाल सेनाओं ने मिलकर महाराणा कुम्भा पर हमला कर दिया। महाराणा कुम्भा ने अपनी छोटी लेकिन वीर सेना के दम पर महमूद खिलजी और कुतुबुद्दीन की सेना को रणक्षेत्र में बुरी तरह परास्त कर दिया। महाराणा कुम्भा की इस विराट जीत को पूरे मेवाड़ ने उत्सव के रुप में मनाया। महाराणा कुम्भा को नए और अद्भुत वास्तु बनाने में काफी रुचि थी, और ऐसे में इस ऐतिहासिक जीत की खुशी उन्होंने ये ऐलान कर दिया कि इस विजय के प्रतीक के तौर पर मेवाड़ में एक ऐसी इमारत बनाई जाएगी जैसी पहले मेवाड़ में कभी नहीं बनी। और फिर शुरू हुआ निर्माण उस भव्य इमारत का आने वाले हजारों सालों तक महाराणा कुम्भा के जीत का प्रतीक बने खड़ी रहने वाली है। 

आज से 550 साल पहले बनाइ इस इमारत के निर्माण में काफी चुनौतियाँ थी। एक तो स्तम्भ को नौ मंजिला बनाना था और गिरने से भी बचाना था और साथ ही ऊँचाई पर बहने वाली तेज हवाओं से ऊपरी भाग को सुरक्षित भी रखना था। तेज हवाओं से बचाने के लिए इस इमारत के दो हिस्से बनाये गए जो आपस में एक दूसरे को जोड़े हुए मजबूती से खड़े हैं। सेंट्रल चैम्बर और आउटर गैलरी, साथ ही खंबो और बीम से इस स्तम्भ को आधार दिया गया। ये स्तम्भ राजपूत वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। ये पूरी इमारत रेड सैंडस्टोन से बनाई गई है, जिसमें नक्काशी आसानी से की जा सकती है। पूरे विजयस्तम्भ को बेहतरीन नक्काशियों से सजाया गया है, जिन्हें देख कर ऐसा लगता है कि उस समय के भारत का सांस्कृतिक इतिहास हम यहाँ देख रहे हैं। जब इस स्तम्भ का निर्माण हुआ था तब शहर का ऐसा कोई कोना नहीं था जहाँ से ये स्तम्भ दिखाई न दें। बिना किसी आधुनिक तकनीक से बनाई ये 'विजयस्तम्भ' न सिर्फ महाराणा कुम्भा के शौर्य का प्रतीक है बल्कि उनके साथ लड़े हर सैनिक के साहस का आधार भी है। विजय स्तंभ राजस्थान पुलिस और माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक चिन्ह है।

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