जी हाँ , सही सुना आपने सेठ भांडासर जैन मन्दिर ( Bhandasar Jain Temple ) का निर्माण 40,000 किलो शुद्ध देसी घी से हुआ था । इस मंदिर को भांडाशाह जैन मंदिर ( Banda Shah Jain temple ) के नाम से भी जानते हैं ।
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| Image Source : Social Media |
कहाँ पर हैं भांडासर जैन मन्दिर
भांडासर जैन मंदिर या बंदा शाह जैन मंदिर, राजस्थान के बीकानेर में स्थित है। बीकानेर में पांच शताब्दी से ज्यादा प्राचीन भांडाशाह जैन मंदिर दुनिया में अपनी अलग ही ख्याति रखता है। बीकानेर के पुराने शहर की चारदिवारी के बीच बसा है ‘बड़ा बाज़ार‘। इस बाज़ार में भांडाशाह नाम के व्यापारी ने 1468 में एक जैन मंदिर बनवाना शुरू करवाया और इसे 1541 में उनकी पुत्री ने पूरा कराया था। मंदिर का निर्माण भांडाशाह जैन द्वारा करवाने के कारण इसका नाम भांडाशाह जैन मंदिर पड़ गया। तल से 108 फुट ऊंचे इस जैन मंदिर में पांचवें तीर्थकर भगवान सुमतिनाथ जी मूल वेदी पर विराजमान हैं।
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मन्दिर के निर्माण में इस्तेमाल हुआ है 40,000 किलो घी
मंदिर के निर्माण में मोटार के साथ पानी की 40,000 किलो शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल किया गया था। मन्दिर का निर्माण भांडाशाह ओसवाल जी ने करवाया जो कि घी के व्यापारी थे। जानते हैं इस मंदिर के निर्माण की पूरी कहानी ....
ऐसा कहा जाता हैं कि मन्दिर का निर्माण भांडाशाह ओसवाल जी ने करवाया जो कि घी के व्यापारी थे । जब मंदिर के निर्माण को लेकर उनकी बैठक मिस्त्री के साथ चल रही थी , तब दुकान मे रखे घी के पात्र मे एक मक्खी गिर कर मर गयी तो सेठ जी ने मक्खी को उठा कर अपने जूते पर रगड़ लिया और मक्खी को दूर फेक दिया, पास ही बैठा मिस्त्री ये सब देख कर आश्चर्यचकित हो गया कि सेठ कितना कंजूस है मक्खी मे लगे घी से भी अपने जूते चमका लिए, फिर मिस्त्री ने सेठ की दानवीरता की परीक्षा लेने की ठानी, मिस्त्री बोला सेठ जी मंदिर को शताब्दियों तक मजबूती देने के लिए इसमे उपयोग होने वाले मिश्रण में पानी की जगह घी का उपयोग करना उचित रहेगा। सेठ जी भोले-भाले थे ।
तभी उन्होने घी का प्रबंध कर दिया । मंदिर का निर्माण जब शुरू हो रहा था । उस समय मिस्त्री घी को देखकर आश्चर्य चकित हो उठा , तभी मिस्त्री ने सेठ जी से क्षमा मांगी और कहा कि मैंने एक दिन आपको घी मे पड़ी मक्खी से अपने जूते चमकाते देखा तो सोचा की आप बहुत कंजूस हो पर सेठ जी आप तो बहुत बड़े दिल के दानवीर हो मुझे माफ कर दीजिये। ये घी वापस ले जाइए मै मंदिर निर्माण मे पानी का ही प्रयोग करूंगा, तब सेठ जी ने कहा कि वो तुम्हारी ना समझी थी कि तुमने मेरी परीक्षा ली अब ये घी भगवान के नाम मैंने दान कर दिया है सो अब इसका उपयोग तुमको मंदिर निर्माण मे करना ही होगा, मिस्त्री ने मंदिर निर्माण मे 40 हज़ार किलो घी का प्रयोग किया, आज भी तेज गर्मी के दिनो मे इस जैन मंदिर की दीवार और फर्श से घी रिसता है।
मंदिर के 500 वर्ष पूर्ण होने पर डाक विभाग द्वारा विशेष आवरण एवं विरुपण जारी किया गया था। मंदिर में बने भित्ति चित्रों में सोने के लगभग 700 वर्ग लगाए गये हैं।तीन मंज़िला मंदिर को बनाने मे लाल और पीले पत्थर का प्रयोग किया गया है, इस की दीवारों, खिड्कियों और छत पर आपको उस समय की अद्धभुत कारीगरी देखने को मिलेगी, पत्ती नुमा चित्रकारी, फ्रेसको चित्रकारी, शीशा पर की गयी कारीगरी देख कर आप सिर्फ और सिर्फ देखते ही रह जाएगे पांचवे तीर्थांकर को समर्पित इस जैन मंदिर की ख्याति देश ही नहीं अपितु विदेशो तक है।



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