आजतक इतिहास में 3 बार प्लेग ने महामारी लायी थी। भले ही आज प्लेग ज्यादा खतरनाक बीमारी नहीं है लेकिन एक समय इस बीमारी ने पूरी दुनिया की आधी आबादी खत्म कर दी थीं, प्लेग बीमारी होती है येर्सिनिया पेस्टिस नामक बैक्टिरिया से।
ये जीवाणु चूहों के शरीर पर पलने वाले पिस्सुओं के अन्दर मौजूद होता है। बात है अक्टूबर 1347 की, इटली के सीसलियन पोर्ट पर 12 जहाज आकर रुक गए, जो चीन से होकर आ रहे थे, इन 12 जहाजो में मौजूद यात्रियों की हालत काफी खराब थी उनकी त्वचा पर गहरे जख्म थे उनसे खून निकल रहा था, और उन यात्रियों में कुछ तो सफर के दौरान ही मर चुके थे। दरअसल जहाज पर मौजूद लोगों को प्लेग ने अपनी चपेट में ले लिया था और किसी ने ये सोचा भी नहीं होगा कि यही जहाज यूरोप में आधी आबादी खत्म होने की वजह बनने वाला था। ऐतिहासिक रेकॉर्ड के अनुसार 1330 में पहली बार प्लेग की महामारी चीन में आई थी, उसके बाद सिल्क रुट यानि व्यापारिक मार्ग से होते हुए कारोबारियों और जहाजों से ये बीमारी इजिप्ट और यूरोप पहुँची। इस बीमारी में मरीज को बहुत ही तेज बुखार आता साथ ही शरीर की त्वचा पर लाल धब्बे और फोड़े बन जाते थे और इन्फेक्शन होने के सिर्फ 2-4 दिन के बाद ही मरीज की मौत हो जाती। माहौल तो तब खराब हुआ जब संक्रमित लोगों के केवल कपड़े तक को छूने से ये बीमारी फैलने लगी। जिसकी वजह से बहुत ही कम समय में यूरोप का हर शहर प्लेग की चपेट में आ गया। उस वक्त बीमारी कैसे फैलती है इसकी जानकारी नहीं थी इसलिए अंधविश्वास भी काफी बढ़ने लगा कुछ लोग समझने लगे कि ये देवताओं का प्रकोप है, तो कुछ कहने लगे कि संक्रमित लोगों के मरने के बाद उनकी आत्मायें दूसरे लोगो के शरीर में प्रवेश करके के ये बीमारी फैला रही है। जिससे हुआ ये की मरीजों के पास जाने से लोग डरने लगे और उन्हें कमरे में बंद करके रखने लगे और कई बार उनके गुजरने के बाद भी उनके पास नहीं जाते।
फ्रांस के कई शहरों और गाँव से लोग अपने घरों को छोड़ के चले गए। कुछ शहरों में तो लाशें इसीलिए पड़ी रहती थी कि उन्हें दफनाने के लिए लोग जिंदा ही नहीं बचे थे। लोगों को सामूहिक रूप से दफन किया जाने लगा। इस बीमारी ने जानवरों को भी नहीं छोड़ा भेड़ बकरियाँ, सुवर और अन्य जानवर हजारो की संख्याओं में दम तोड़ने लगे। इस समय में पूरे यूरोप में ऊन की कमी आ गयी। ऐसा नहीं है कि लोगों ने इसका इलाज करने की कोशिश नहीं की, लेकिन इलाज के तरीके इतने दर्दनाक थे कि लोग इसके बदले मरना ही पसंद करते थे। एक तरीके में मरीज के त्वचा पर हुए फोड़ो में कील डाल कर खून निकाल जाता था जिससे इस बीमारी के जीवाणु शरीर से निकल जाएं। कुछ लोग जिन्हें ये देवताओ का प्रकोप लगता था वो अपने आपको चोट पहुँचाते और अपने देवताओं से माफी मांगते थे। उस समय इनमें से कोई भी तरीका किसी की जान नहीं बचा पाया और इस बीमारी ने दुनिया भर से 20 करोड़ लोगों की जान ली थी। कई लोग तो ये सोचने लगे थे कि मानव दुनिया का अंत ही होने वाला है। ये सब 4 से 5 सालों तक चला। उसके बाद ये महामारी रुक गयी। ऐसा नहीं कि उसके बाद ये बीमारी किसी और को नहीं हुई लेकिन जितनी जानें प्लेग ने उन 4 से 5 सालों में ली उतनी जानें कभी किसी दूसरी बीमारी ने नहीं ली थी। इतिहास में इसे ब्लैक डेथ के नाम से भी जाना जाता है।
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