विश्वप्रसिद्ध खजुराहो के मंदिर मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। चंदेल राजाओं द्वारा 9वीं शताब्दी में बनाये गए ये 25 मंदिर भारत के सबसे अनोखे मंदिरों में से एक हैं। राजा चंद्रवर्मन जिन्होंने खजुराहों शहर बनवाया था उन्होंने इस शहर के चारों तरफ खजूर के पेड़ लगाए थे जिसकी वजह से इस शहर को ये नाम मिला। खजुराहों के ये 25 मंदिर यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में दर्ज हैं। पहले यहाँ कुल 85 मंदिर थें लेकिन आक्रमणकारियों के लगातार आक्रमण के कारण यहाँ के 25 मंदिर ही बचे हैं, इन 25 मंदिरों में से 10 भगवान विष्णु, 8 भगवान शिव के 5 जैन मंदिर , एक सूर्य मंदिर और एक चौसठ योगिनी मंदिर है। यहाँ के मंदिरों पर हजारों आकृतियों बनाई गई हैं जिनमे से कुछ देवी देवताओं की आकृतियाँ है तो कुछ उस समय के जीवन शैली को दिखाती है और कुछ आकृतियाँ शिक्षा के उद्देश्य से प्रदर्शन के रूप में बनाई गईं हैं।लेकिन केवल 10% ही आकृतियाँ कामुकता को दिखाता है, लेकिन इसके बावजूद भी इन मंदिरों की चर्चा इन्ही मूर्तियों व आकृतियों को ले कर होती है। इन मूर्तियों को देख कर किसी के भी मन मे ये सवाल आ सकता है कि मंदिर की इन पवित्र दीवारों पर इस तरह की मूर्तियां क्यों बनाई गई होंगी। इन मूर्तियों को बनाने के पीछे दो वजह है । एक वजह ये है कि इन मूर्तियों के जरिये उचित काम शिक्षा दिया जाता था, मंदिर एक ऐसी जगह है जहाँ बच्चे बड़े बूढ़े सभी जाते है और किसी भी विषय के बारे में शिक्षा देने के लिए मंदिर उस समय एक अच्छा स्थान होता था , खजुराहो के मंदिर में युद्ध से संबंधित शिक्षा युद्ध में प्रयोग होने वाले अस्त्र शस्त्र के बारे में और अन्य विषयों के संबंधित उचित आकृतियाँ बनाई गई हैं, इससे पता चलता है कि इस तरह की मूर्तीयों का वहाँ होना केवल सभी मे उचित यौन शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाना था।
दूसरा कारण ये है कि 9वी-10वीं शताब्दी में भक्ति मार्ग का प्रभाव बढ़ता जा रहा था और ज्यादा से ज्यादा युवा सांसारिक जीवन को छोड़कर सन्यास के मार्ग अपनाने लगे थे ऐसी में ये किसी भी राज्य के भविष्य के लिए चिंता का विषय था, इस लिए युवाओं में सांसारिक जीवन के प्रति रुचि बढ़ाने और काम मनुष्य के पुरुषार्थ का अंग होता है और 'मनुष्य का कर्तव्य होता है कि वो अपने कुल को आगे बढ़ाए,' इस बात को समझाने के लिए उस समय की स्थिति को देखते हुए कुछ राज्य में ऐसे मंदिर व कलाकृतियों का निर्माण करवाया गया।
भले ही आज हमें इस तरह की मूर्तियों का इन मंदिरों पर होना हमें असहज करता हो लेकिन आज से हजार साल पहले इनका मंदिरो की दीवारों पर होना कोई भारतीयों के लिए कोई taboo का विषय नही था, न ही इससे मंदिरों की पवित्रता पर कोई असर पड़ता है क्योंकि इसका उद्देश्य सकारात्मक है। इससे एक बात तो साफ है उस समय पर भारतीय आज से या अपने समय के किसी अन्य सभय्ता से ज्यादा खुले विचारों वाले लोग थें।
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