यह दुनिया की सबसे बड़ी बावड़ी है
चाँद बावड़ी का निर्माण 8वीं सदी में निकुम्भ राजवंश के राजा चाँद नें करवाया था और उन्ही के नाम पर इस बावड़ी का नाम चाँद बावड़ी पड़ा। इस बावड़ी को देखते ही हजारों सीढ़ियों के जाल और पानी का ये विशाल भंडार नजर आता है, दरअसल बावड़ी बनाई ही इसलिए जाती है ताकि पानी को स्टोर करके रखा जा सके, इस बावड़ी में 3500 सीढ़ियाँ है जो कि इस बावड़ी की सुंदरता में चार चाँद लगाने के साथ साथ एक और महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
बरसात के मौसम में पानी का स्तर काफी ऊँचा रहता है, लेकिन गर्मी के मौसम में कम हुए पानी के स्तर तक आसानी से पहुंचा जा सके इसलिए इस बावड़ी में गहराई तक जाने के लिए इतनी सीढ़ियाँ मौजूद है। बारिश के मौसम में आस पास का सारा पानी इन्हीं सीढियो से होकर धीरे धीरे नीचे उतरता है और पानी के स्तर को और बढ़ता है ये दुनिया की सबसे गहरी और गहरी बावड़ी है। ये बावड़ी 13 मंजिल गहरी है। यहाँ के स्थानिक लोग इस बावड़ी में जमा हुआ पानी पूरे साल तक इस्तेमाल किया करते थे।
बावड़ी का Cooling system कैसे काम करता है ?
अब बात करते हैं इस बावड़ी की ऐसे खूबी की जो इसे नेचुरल कूलिंग सिस्टम का सबसे बेहतरीन उदाहरण बनाती है। इस बावड़ी में नीचे उतरते ही हमें ठंडक का आभास होता है और इस के पीछे वजह की इस बावडी की अनोखी रचना। इस बावड़ी को बनाते समय Earth Coupling के सिद्धान्त का इस्तेमाल किया गया था। राजस्थान की हवा सुखी होती है और नीचे जमीन के मुक़ाबले ऊपर की हवा का तापमान काफी ज्यादा होता है। इस बावड़ी की ऊपर की रचना ऐसी है कि बावड़ी की ठंडी हवाएं ऊपर नहीं जा सकती है और न ही ऊपर की गर्म हवा नीचे पहुँच पाती है जिससे Passive कूलिंग इफ़ेक्ट पैदा होता है और तापमान में कमाल की गिरावट होती है। चौरस आकार में बनाई गई इस बावड़ी में 3 तरफ सीढ़ियाँ है जो नीचे तक जाती हैं। और चौथे साइड में एक महल जैसी रचना बनाई गई है जिसमें कई सारे मंदिर है। जिसमें कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ है।
प्रसिद्ध हर्षदमाता का मंदिर यही पर हैं
प्रसिद्ध हर्षदमाता का मंदिर भी यही है जिन्हें खुशहाली की देवी माना जाता है। इसी चौथी साइड में एक बड़ा सा रंगमंच भी बनाया गया था जहाँ कई लोकनाट्य उस समय हुआ करते थे, और इस लोकनाट्य का लाभ उठाने हजारों लोग यहाँ आया करते थे। उस वक्त इन सीढ़ियों के उपयोग कुर्सियों की तरह किया जाता था। इस रंगमंच के ऊपर एक मंडप भी बना होता था जिससे यहाँ दिन भर छाँव रहा करती थी। इस बावड़ी कि खासियत यहीं तक सीमित नहीं है। इसकी एक और खासियत है जो इसे बनाने वाले Engineers के कौशल और दूरदृष्टि को दर्शाता है इस बावड़ी को ऐसे बनाया गया जो 7.6 मैग्नीट्यूड रिएक्टर स्केल का भूकंप भी झेल सकती है। जाहिर सी बात है कि 1200 साल पहले इसे बनाने के लिए सीमेंट का तो इस्तेमाल तो नहीं किया गया होगा तो जरा सोचिए इन पत्थरों को जोड़ने के लिए उन Engineers ने जो पेस्ट इस्तेमाल की थी वो कितनी मजबूत होगी, जो आज के सीमेंट से भी कई गुना मजबूत थी।
जैसे घाव भारत की अन्य ऐतिहासिक वास्तुओं ने झेले हैं वैसे ही घाव का सामना इस बावड़ी को भी झेलना पड़ा था। सन 1025 में जब महमूद ग़ज़नवी सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था तो उसी काल के दौरान उसकी नजर इस बावड़ी पर भी पड़ी थी और उसने इस बावड़ी में आकर तोड़फोड़ भी की। बाद में जयपुर के राजाओं ने इस बावड़ी की मरम्मत की। इस बावड़ी को लेकर ये बात भी कही जाती है कि आप कितना भी सोच समझकर नीचे उतरे और कितना भी ध्यान दे कर ऊपर आने की कोशिश करें आप जिन सीढ़ियों से नीचे गए थे ठीक उन्ही सीढ़ियों से ऊपर नहीं आ सकते है और इसीलिए इस बावड़ी को "भूल-भुलैया" भी कहते हैं।
यहाँ पर कैसे पहुँचा जाए
आभानेरी नगर राजस्थान के दौसा जिले से करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर है और जयपुर से लगभग 95 किलोमीटर की दूरी पर। जयपुर और दौसा से कई बसों की सुविधा यहाँ तक के लिए उपलब्ध हैं।
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