जानिए 700 साल पुरानी अलार्म सिस्टम के बारे में जो दुश्मनों के आने की खबर देता था !

गोलकुंडा किले



क्या आप यकीन करोगे की जब पूरी दुनिया में कोई बिजली नहीं थी, किसी भी तरह का कोई मॉडर्न मशीने नहीं थी , उस समय में भारत मे एक ऐसी सिस्टम मौजूद थी जिसे आज हम सिक्योरिटी अलार्म कहते हैं।

जी हाँ , 12वीं सदी में बने इस किले में एक ऐसा अलार्म सिस्टम मौजूद था जिसके जरिये 3 Sq किमी. तक किसी दुश्मन के आने की खबर दे कर सतर्क किया जा सकता था।

भारत में कई किले हैं और हर किले की अपनी कुछ खास बातें है, लेकिन हैदराबाद के पास के मौजूद जिस गोलकुंडा किले की बात आज हम बताने जा रहे हैं वो पहचाना जाता है अपने सिक्योरिटी अलार्म सिस्टम की वजह से जो आज से सैकड़ो साल पहले इस्तेमाल किया जाता था । यह किला भारत के सबसे खास किलो में से एक है।

काकतीय राजवंश द्वारा इस किले का निर्माण 11वीं शताब्दी में शुरू किया गया था,बाद में कई सालों तक इसका निर्माण कार्य चलता रहा, बाद में रानी रुद्रमादेवी के शासनकाल में इस किले का नए सिरे से निर्माण करवाया गया और कुछ खास बदलवा किये गए। भले ही इस किले पर अलग अलग शासकों का राज व आक्रमणकारियों का कब्जा था लेकिन इसकी सुंदरता और खासियत कभी नही बदली और इस किले की अहमियत भी साल दर साल बढ़ती गयी।

गोलकुंडा शहर अपने समय में सबसे प्रसिद्ध हीरे की खान हुआ करता था, कहा जाता है कि दुनिया के सबसे बेशकीमती 13 हीरे यही से निकले थे। जिनमें कोहिनूर भी शामिल है।
इस किले में कई इमारतें हैं जो अलग-अलग समय में अलग-अलग राजाओ द्वारा बनाई गई थी वैसे तो इस किले की कई विशेषताएँ हैं लेकिन सबसे खास बात है यहाँ मौजूद एक ऐसी सिस्टम जो अपने समय से कई गुना आगे की थी।

इस किले के कारीगरों ने साउंड और उसके रिफ्लेक्शन ( reflection ) का अच्छा उपयोग करके किले में एक अलार्म सिस्टम बनाया था। इस किले में प्रवेश करते ही एक बरामदा आता है, जिसके सीलिंग पर एक डायमंड जैसी रचना है , इन डायमंड कट्स की वजह से इसपर पड़ने वाली आवाज रिफ्लेक्ट होती है , ये रिफ्लेक्शन इतना सटीक और जोरदार होता है कि वो किले की दूसरी छोर पर भी साफ सुनाई देती है। ये सिस्टम इसलिए बनाई गया था कि किले में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के बारे दूर बैठे सिपाहियों को बताया जा सके, और जब कोई दुश्मन के आने की खबर मिले तो किले में तैनात सभी सैनिकों को एक साथ सतर्क किया जा सके, इसके लिए एक कोड का इस्तेमाल किया जाता था, और दुश्मन के आने की भनक लगने पर 3 तालियां बजा कर सबको सतर्क किया जाता था। इस प्रकार के सिस्टम को ठीक तरीके से चलाने के लिए कई सारे इंतजाम किये गए थे, यहाँ के बिल्डिंगो के बीच एक सटीक दूरी बनाए गए है और यहाँ की दीवारों को एक दूसरे से निश्चित दूरी पर बनाया गया है इसी वजह से किले में एक छोर पर किया गया आवाज ऐसे टकराता है कि वो बिना अपनी तीव्रता कम किये एक छोर से दुसरे छोर तक आसानी से पहुँच जाता है। 

आवाज को और ज्यादा अम्प्लीफाई करने में यहाँ के दीवारों में उपयोग किये गए मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े भी सहायता करते है । कारीगरों ने पुराने मिट्टी के बर्तनों को यहाँ की दीवार की पुताई  करने बाले मिश्रण में मिलाया था ।
ऎसी ही तकनीक का इस्तेमाल यहाँ के राज दरबार में भी किया गया था, जब लोग अपने समस्याएँ लेकर राजा के पास आते थे तो उन्हें एक विशेष स्थान पर खड़ा किया जाता था जिससे राजा दूर से ही लोगो के मसले स्पष्ट रूप से सुन सकें। वहाँ मौजूद लोगों की मामूली सी आवाज भी एम्प्लीफाई हो कर दूर तक साफ सुनाई देती थीं।
तो ये थी हमारे भारत के प्राचीन तकनीक का एक उदाहरण ऐसे हजारों तकनीकें प्राचीन भारत में मौजूद थीं जो अपने समय से बहुत आगे थीं।

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