क्या 2000 साल पहले भारत में होता था सायकिल का इस्तेमाल ........


हमारे प्राचीन भारत में ऐसे कई अविष्कार किये गए थे जिनका श्रेय बाद में पश्चिमी खोजकर्ताओं ने लिया, आज हम आपको ऐसे ही एक अविष्कार के बारे में बताएंगे जिस अविष्कार ने हम इंसानो की जीवनशैली और यातायात के क्षेत्र में क्रांति लाई थी। 

ये चीज थी सायकिल। कहा जाता है कि सायकिल का अविष्कार आज से 200 साल पहले जर्मनी में हुआ था। और ये साईकल किसी एक आदमी का अविष्कार नहीं था। बल्कि कई सालों में इसका विकास होते होते आज के साईकल का रूप बना था।

 भारत में साईकल पिछले 200 सालों के बीच कब और कैसे आयी इसका कोई लिखित इतिहास नहीं है। लेकिन जर्मनी में साईकल का अविष्कार होने से पहले भारत में आज से हजारों साल पहले साईकल का इस्तेमाल होता था इसका स्पष्ट रूप से प्रमाण मिलता है तमिलनाडु के एक प्राचीन मंदिर में। तमिलनाडु के पंचवर्णस्वामी मंदिर जिसका वर्णन कई प्राचीन ग्रंथ और साहित्य में मिलता है और जो आज से 2000 साल पहले बना था, इस मंदिर के एक खंभे पर एक कलाकृति बनी है। इसमें साफ तौर से एक आदमी को एक सायकल पर बैठे दिखाया गया है, और इसमें दिखाया गया आदमी भी भारतीय ही है।

 कुछ सालों पहले उत्तरप्रदेश के बागपत में 4 से 5000 साल पुराने रथ के अवशेष मिले थे जिससे ये बात साबित होती है कि आज से 5000-6000 साल पहले भारतीय पहिये का इस्तेमाल किया करते थे। ये रथ मिलने से पहले कुछ गलत विचारधारा वाले इस बात से इनकार करते थे कि भारतीयों को पहिये का ज्ञान था ।

 लेकिन इन सबूतों के मिलने के बाद ये साबित हो गया कि उनकी सोच गलत थी। अब ठीक वैसे ही कुछ लोग इस शिल्पकला को भी गलत कह कर ये मानने से इंकार कर रहे हैं कि भारतीय इतने प्रगतिशील थे कि आज से 2000 साल पहले साईकल का इस्तेमाल कर रहे थें। कुछ इतिहासकारों का ऐसा कहना है कि 1920 में इस मंदिर की मरम्मत की गई थी और उसी दौरान किसी मूर्तिकार ने इस सायकल को इस खम्भे पर बनाया होगा। लेकिन इस बात का कोई लिखित प्रमाण नहीं है कि इस मंदिर की कभी मरम्मत की गई थी। और अगर की भी गयी होगी तो आकृति को देखने से पता चलता है कि इस आकृति को बाद में खम्बे पर बनाना संभव नहीं था, क्योंकि ये आकृति खम्भे के उपर उभरी है और अगर पहले से मौजूद खम्बे पर इन शिल्प को निकालने की कोशिश की गई होती तो पूरे तो पूरे खम्भे को ही तराशना पड़ता जिसके कोई निशान यहाँ नहीं मिलते । और ऐसा करने पर खम्बे की मोटाई में कमी आती जिसका कोई संकेत यहाँ नहीं मिलता है। इसका अर्थ साफ है कि ये बाद में बनाई हुई आकृति नहीं है और पिलर सहित मंदिर पुरात्वविदों के अनुसार 2000 साल पुरानी है इसका अर्थ है कि ये आकृति भी उसी समय की है। जहाँ इतिहास में ये बताया जाता है कि सायकिल की खोज 200 साल पहले पश्चिमी लोगों ने की थी वहाँ भारत में मौजूद ये मंदिर भारतीयों की उच्च प्रगति को दर्शाता है।

Post a Comment

0 Comments