महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पटरी पर सोये प्रवासी मजदूरों (Migrant Workers) के ऊपर से मालगाड़ी गुजरने से 16 की मौत हो गई है।
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यह सभी 20 मजदूर जालना की एक सरिया फैक्ट्री में काम करते थे। पिछले 45 दिनों से लॉकडाउन के कारण बंद पड़ी थी इस फैक्ट्री में मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूर काम करते थे । इनके पास सिर्फ नाम की जमा पूंजी थी जो कि महीने भर में खर्च हो चुकी थी । किसी भी तरह ने महीने बाद काम चलाया और उसके बाद सामाजिक संगठनों और सरकार ने मदद की । इसी बीच इन लोगों को खबर मिली की सरकार दूसरे राज्यों के मजदूरों को घर भेजने के लिए औरंगाबाद या भुसावल से कोई ट्रेन चलाने वाली है ।
इनके पास थी सिर्फ 150 रोटियाँ और चटनी
जालना से औरंगाबाद की दूरी 60 किलोमीटर है । मध्य प्रदेश के 20 मजदूर रेलवे ट्रैक के किनारे से सफर के लिए निकल पड़े उनकी खाने के लिए उनके पास सिर्फ डेढ़ सौ रोटियाँ और एक टिफिन चटनी थी पर उन लोग के लिए क्या पता था यह यात्रा , उनकी अंतिम यात्रा हैं । गुरुवार को सभी लोगो ने मिलकर करीब 150 रोटियां बनाई , और एक टिफिन चटनी । सभी मजदूरों की उम्र करीब 20 से 45 वर्ष की थी । ये सभी मज़दूर मध्य प्रदेश के शहडोल एवं कटनी जिले के थे । औरंगाबाद जिले के करमाड तक पहुंचे तो रात गहरी हो चली थी। सोचा, खाना खाकर कुछ आराम कर लिया जाए।
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इन मज़दूर में एक सज्जन सिंह थे , वो बाल बाल बच गए । वो कहते है कि " भूख लगी थी तो ट्रैक पर ही बैठकर खाना खाने लगे सब लोग । ट्रैक हम लोगो को साफ और सुरक्षित लगा । सब लोगो का खाना होने के बाद । कुछ लोगों की राय थी कि सफर फिर से शुरू किया जाए और कुछ लोगों की यहीं पर आराम किया जाए
भूखे पेट को रोटी मिली थी। इसलिए, पटरी का सिरहाना और गिट्टियां भी नहीं अखरीं और वो सभी वही सो गए। नींद खुली तो भयानक मंजर था।
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यहां पर हुई गलती
सज्जन सिंह जी कहते हैं कि , “आंख खुली तो होश आया। देखा मेरा बैग ट्रेन में उलझकर जा रहा है। हम सब लोगो ने यह सोचा था कि ट्रेनें तो बंद हैं , इसलिए, ट्रैक पर कोई गाड़ी नहीं आएगी।
फिर हम लोगो का प्लान ट्रैक पर ही आराम करने का हो गया ।
ट्रेन जब रुकी तब तक तो सब खत्म हो चुका था। 16 साथियों के क्षत विक्षत शव ट्रैक पर पड़े थे। किसी को पहचान पाना मुश्किल था।”
Source - Dainik Bhaskar



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