Forest Wealth in Madhya Pradesh
मध्यप्रदेश में वन सम्पदा
मध्यप्रदेश का कुल क्षेत्रफल 3,08,252 वर्ग किलोमीटर है , जिसके लगभग 77,462 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में जंगल फैले हुए हैं ।
जो कि लगभग भारत के पूरे जंगल में से 30% जंगल वाले क्षेत्र को cover करते हैं। वन संपत्ति से मध्य प्रदेश सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए की आमदनी होती है । वनों से प्राप्त होने वाली संपदा को दो भागों में बांटा जा सकता है ।
1.मुख्य सम्पदा
मुख्य सम्पदा के अंतर्गत इमारती लकड़ी प्राप्त होने वाले वन वृक्ष शामिल हैं जैसे सागौन , हल्दू , शीशम, सेमल, धौल , साल, आदि ।
2.गौण सम्पदा
गौण सम्पदा के अंतर्गत लाख , तेंदू का पत्ता , कत्था , हर्रा , विभिन्न प्रकार के गोंद , दवाइयों के लिए पौधे तथा विभिन्न प्रकार की घास प्रमुख हैं ।
मुख्य सम्पदा
◆ सागौन वन -
जिस क्षेत्र की मिट्टी काली होती है , वहाँ पर यह वन पाये जाते है । सागौन वनों के लिए 75 से 125 सेमी वर्षा पर्याप्त होती है । सागौन की लकड़ी बहुत ही मज़बूत होती हैं । सागौन की लकड़ी में एक ग्रेन होती है , जिसके कारण सागौन की लकड़ी से बने सामान में सुंदरता आ जाती है ।
◆ साल वन -
इसकी लकड़ी इमारती कामों में प्रयोग की जाती है। इसकी लकड़ी बहुत ही कठोर, भारी, मजबूत तथा भूरे रंग की होती है।
लाल और पीली मिट्टी वाले क्षेत्र में साल वन पाए जाते हैं । साल वनों के लिए औसत 12.5 cm वर्षा वाला क्षेत्र चाहिए यह वन अधिक घने होते हैं । साल की लकड़ी का उपयोग स्लीपर बनाने में किया जाता है ।
◆ बाँस -
बांस 75 सेमी या अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाया जाता है । मध्यप्रदेश में डैन्ट्रोकैेलामस स्ट्रिक्टस ( dentrocalamus strictus ) प्रकार का बांस पाया जाता है । मध्य प्रदेश में 50 लाख नेशनल टन बाँस का भंडार है । बांस की लुगदी से कागज का निर्माण भी किया जाता है ओरिएंट पेपर मिल अमलाई और नेपानगर अखबारी कागज के कारखानों में बांस का प्रयोग से किया जाता हैं ।
जहाँ पर चिकित्सकीय उपकरण उपलब्ध नहीं होते, बाँस के तनों एवं पत्तियों को काट छाँटकर सफाई करके खपच्चियों का उपयोग किया जाता है। बाँस का खोखला तना अपंग लोगों का सहारा है। इसके खुले भाग में पैर टिका दिया जाता है। बाँस की खपच्चियों को तरह तरह की चटाइयाँ, कुर्सी, टेबुल, चारपाई एवं अन्य वस्तुएँ बिनन के काम में लाया जाता है।
गौण सम्पदा
◆ खैर वृक्ष
खैर वृक्ष की लकड़ी के टुकड़ों को उबालकर निकाला और जमाया हुआ रस जो पान में चूने के साथ लगाकर खाया जाता है, खैर या कत्था कहलाता है। खैर वृक्ष का उपयोग कत्था बनाने में किया जाता है । पाचन तंत्र की गड़बड़ियों में खैर के वृक्ष उपयोगी हैं । जबलपुर, सागर , दमोह , उमरिया और होशंगाबाद में खैर के वृक्ष पाए जाते हैं । मध्यप्रदेश में शिवपुरी तथा बानमोर में कत्था बनाने का एक-एक कारखाना है ।
◆ लाख
लाख का इस्तेमाल मुख्यत: श्रृंगार की वस्तुओं, सील, चपड़ा, विद्युत कुचालक, वार्निश, फलों व दवा पर कोटिंग, पॉलिश व सजावट की वस्तुएं तैयार करने में किया जाता है।
◆ हर्रा को 'हरीतकी' एवं 'हरड़' के नाम से भी जाना जाता है। हर्रा के वृक्ष विशाल होते हैं, जिनकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है। हर्रा आमतौर से उत्तर भारत के उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती वनों (Tropical deciduous forests) में पाया जाता है। हर्रा का वैज्ञानिक नाम टर्मिनेलिया चेबुला (Terminalia chebula) है।
मध्यप्रदेश में हर्रा निकालने के अनेक कारखाने हैं । हर्रा का प्रयोग चर्म शोधन में किया जाता है । इस से चमड़ा साफ करने का एक लोशन बनाया जाता है । हर्रा में 35 से 40% तक चर्म शोधन तत्व होते हैं । हर्रा मुख्यता छिंदवाड़ा , बालाघाट , मंडला , श्योपुर , शहडोल के वनों से प्राप्त होता है ।
◆ तेंदूपत्ता
तेंदूपत्ते से बीड़ी बनाने का उद्योग मुख्यतः सागर , जबलपुर , शहडोल एवं सीधी , दमोह , गुना, रीवा में संकेंदीकृत है । देश के बीड़ी पत्ता का उत्पादन का लगभग 60% मध्य प्रदेश में प्राप्त होता है । तेंदूपत्ता व्यवसाय में राज्य के 10 लाख आदिवासी मजदूर कार्यरत हैं ।
◆ भीलाला
भीलाला स्याही और पेंट बनाने के काम में आता है छिंदवाड़ा में इसका एक कारखाना है ।
◆ गोंद
गोंद पौधा का एक उत्सर्जी पदार्थ है जो कोशिका भित्ति के सेलूलोज के अपघटन के फलस्वरूप बनता है। सूखी अवस्था में यह रवा के रूप में पाया जाता है, किन्तु पानी में डालने पर यह फूलकर चिपचिपा बन जाता है।
गोंद साधारणतया बबूल , धावड़ा , सैनीयल आदि वृक्षों से प्राप्त होता है खाने के अतिरिक्त गोंद का प्रयोग पेंट उद्योग पेपर प्रिंटिंग दवा उद्योग कॉस्मेटिक आदि में होता है

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