भील जनजाति
" बंदूक से चली गोली का निशाना चूक सकता है ,लेकिन भील के तीर का निशाना कभी नहीं चूकता "
जी सही सुना आपने भील जनजाति के बारे में आज हम भील जनजाति के बारे में और अन्य बातें जानेंगे ।
उत्पत्ति - भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के भील शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है- धनुष । भीलो में धनुष बाण का अत्यधिक महत्व होता है , इसलिए इनका नामकरण इसी के आधार पर किया गया है ।
भौगोलिक वितरण - झाबुआ , खरगोन , बड़वानी, धार आदि जिलों में निवास करते हैं ।
शारीरिक विशेषताएं - भील भूरे से गहरे रंग ,मध्यम सुगठित शरीर, बड़ी आंखें और चौड़े माथे एवं घुंघराले बाल होते हैं । दोनों भील स्त्री व पुरुष अन्य जनजाति के स्त्री पुरुष से सुंदर होते हैं ।
निवास - भीलो का निवास ऊंचे क्षेत्रों में होता है और दो निवासों स्थानों के बीच दूरी अधिक होती है । उनके घर लकड़ी बॉस मिट्टी और खपरैल के बने होते हैं जो आकार में काफी विशाल और चौकोर होते हैं ।
भीलो के गांव को पाल कहा जाता है ।
भीलो के घर के समूह को फाल्या कहा जाता है ।
भीलो के घर की खिड़कियों को नदी कहा जाता है ।
रहन सहन - भील पुरुष धोती और बंडी पहनते हैं तथा सिर पर साफा बनते हैं । भील स्त्रियां घाघरा चोली तथा ओढ़नी पहनती है । स्त्री पुरुष दोनों में आभूषणों का प्रचलन है । स्त्रियों में गोदना गोदवाना मुख्य रूप से प्रचलित है । भील स्त्रियां अत्यधिक आभूषण पहनती है ।
भोजन - यह शाकाहारी और मांसाहारी दोनों है । मक्का जौं ज्वार एवं दालें इन का प्रमुख भोजन है। भीलों के मुख्य खाद्य पदार्थ मक्का , प्याज , लहसुन और मिर्च हैं जो वे अपने छोटे खेतों में खेती करते हैं। वे स्थानीय जंगलों से फल और सब्जियां एकत्र करते हैं। त्योहारों और अन्य विशेष अवसरों पर ही गेहूं और चावल का उपयोग किया जाता है। वे महुआ ( मधुका लोंगिफोलिया ) के फूल से उनके द्वारा आसुत शराब का उपयोग करते हैं। त्यौहारों के अवसर पर पकवानों से भरपूर विभिन्न प्रकार की चीजें तैयार की जाती हैं, यानी मक्का, गेहूं, जौ, माल्ट और चावल। भील पारंपरिक रूप से सर्वाहारी होते हैं।
सामाजिक व्यवस्था - भील समाज पितृसत्तात्मक एवं पितृस्थानीय है । समाज में भील भिलाला , पटेलिया आधी वर्ग पाए जाते हैं । भीलो का गांव भी एक महत्वपूर्ण सामाजिक इकाई होता है जिसमें वरिष्ठ जनों का अत्यधिक विशिष्ट स्थान होता है । विधवा विवाह वर वधू मूल्य भी प्रचलित है भगोरिया हाट भीलो का आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व का मेला है, जो फागुन माह में लगता है ।इनके उत्सव एवं नृत्य में भगोरिया, गौरी, घूमर ,कठपुतली आदि प्रसिद्ध है ।
अर्थव्यवस्था - भील जनजाति अपनी आजीविका के लिए मुख्यता कृषि पर आधारित है । किंतु संसाधनों की कमी के कारण यह कृषि के अतिरिक्त पशुपालन वनोपज संग्रह कृषि मजदूरी आदि भी करते हैं परंपरागत उत्सवों में अत्यधिक खर्च एवं सीमित आय के कारण भील अत्यधिक ऋण ग्रस्त है ।
अस्त्र शास्त्र - वे स्व-निर्मित धनुष और तीर, तलवार, चाकू, गोफन, भाला, कुल्हाड़ी इत्यादि अपने साथ आत्मरक्षा के लिए हथियार के रूप में रखते हैं और जंगली जीवों का शिकार करते हैं । धनुष बाण भीलों का परंपरागत शस्त्र है इसके अतिरिक्त के आक्रमण एवं सुरक्षा के लिए तलवार गुलेल आदि का भी प्रयोग करते हैं आर्थिक बदहाली के कारण भीलों के कुछ समूह लूटपाट भाटिया अपराधी आदि गतिविधियों में भी लिप्त हो गए हैं।
धार्मिक जीवन - भीलो का धर्म आत्मावादी है । इन के सबसे प्रमुख देवता राजापन्था है । जानवरों में ये लोग घोड़े और सर्प की पूजा करते हैं । हिंदू धर्म के प्रभाव के फलस्वरूप शंकर , हनुमान और काली देवी जी की भी पूजा करने लगे ।इनमें पहाड़ , वन, पानी और फसलों के भी अलग अलग देवता है । इनके द्वारा की गई कृषि चिमाता कहलाती है । यह गोल घेघड़ा उत्सव मनाते हैं ।
भील जनजाति की उपजाति
1.बरेला
2.रथियास
3.भिलाला
4.बैगास
5.पटलिया
भील जनजाति के प्रमुख पर्व
1.गल,
2.भगोरिया
3.चलावणी
4.जातरा
भील जनजाति के प्रमुख नृत्य -
1.भगोरिया नृत्य
2. डोहा नृत्य
3. बड़वा नृत्य
4.धूमर नृत्य
5.गौरी नृत्य

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