मध्यप्रदेश में भारिया जनजाति
भारिया का शाब्दिक अर्थ है भार ढोने वाला । भारिया गोंड जनजाति के लिए शाखा है जो द्रविडियन परिवार की जनजाति में शामिल है ।
◆ भौगोलिक वितरण - मध्यप्रदेश में भारिया जनजाति मुख्यतः जबलपुर , छिंदवाड़ा जिलों में पाई जाती है । छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट क्षेत्र की भारिया जनजाति को अत्यंत पिछड़ी जनजाति घोषित किया गया है ।
◆ शारीरिक विशेषताएं - भारियों का कद मध्यम रंग काला , आंख छोटी , नाक चौड़ी , होठ पतले एवं दांत बारीक होते हैं।
◆ निवास - भारिया लोग घने जंगलों में एकांत और ऊँचे स्थलों में रहना पसंद कर करते हैं । इनके गांव को ढाना कहते हैं । जिसमें 2 से लेकर 25 घर होते हैं । भारियाओ के घर घास फूस लकड़ी एवं बांस के बने होते हैं।
◆ रहन सहन - भारिया पुरुष धोती कुर्ता और बंडी पहनते हैं एवं सिर पर पगिया बांधते हैं । स्त्रियां साड़ी ऊपर व नीचे लपेटती है । स्त्री सुंदरता के लिए आभूषणों एवं गोदना का प्रयोग करते हैं । भारिया जनजाति कला संपूर्ण जनजाति हैं। महिलाएं दीवारों पर अलंकरण करती है ।गीत , कथा एवं पहेलियों का इन में अतिरिक्त प्रचलन है ।
भोजन - भारिया शाकाहारी और मांसाहारी दोनों होते है महुआ और आम की गुठली से बनी रोटी तथा कंदमूल व सब्जियां भीम के भोजन में शामिल होती हैं
◆ सामाजिक व्यवस्था - भारिया समाज पितृसत्तात्मक एवं रूढ़िवादी समाज है। इनके समाज में भूमिका, पडिहार एवं कोटवार का महत्वपूर्ण स्थान होता है। सगोत्र विवाह वर्जित है, ममेरे फुफेरे भाई बहनों के विवाह को शुभ माना जाता हैंं।मृतकों को दफनाने की प्रथा है ।
◆ धार्मिक जीवन - भाटिया स्वयं को हिंदुओं से प्रभावित मानते हैं । इनके प्रमुख देवता बूढ़ादेव, दूल्हा देव, नागदेव आदि हैं ।यह लोग हिंदू देवी देवताओं की पूजा करने हैं। भूमका इन का शमन या ओझा होता है
◆ भारिया की उपजाति -
1.भूमिया
2.भुइहार
3.पैडो
◆ भारिया में प्रचलित विवाह पद्धति -
1.मंगनी विवाह
2.लमसेना विवाह
3.राजी बाजी विवाह
4.विधवा विवाह
◆ भारिया जनजाति के प्रमुख त्यौहार -
1.बिदरी पूजा
2.नवाखानी
3.जवारा
4.दीवाली
5.होली
◆ भारिया के प्रमुख नृत्य -
1.भड़म
2. करमा
3. सैतम
4. सैला

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