इस पोस्ट में हम जानेंगे ब्राह्मणी चील के बारे में।
ब्राह्मणी चील (brahmini kite) जो कि मुख्यतः भारत के दक्षिण हिस्से में पाई जाती है यह कर्नाटक तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है । यह वही स्थान पर रहना पसंद करती हैं जहां पर पानी की मात्रा अधिक हो ।
Facts about kite
चील के बारे में अनसुने तथ्य
ब्राह्मणी चील नाम कैसे पड़ा
इनका जिक्र मैथली दो बहिनो की कथा में इसके बारे में जिक्र के कारण इस चील का नाम ब्राह्मणी पड़ गया। यह दक्षिण भारत का पक्षी है जो कि पानी वाली जगह पर रहना पसंद करता है ।
क्या है ब्राह्मणी चील का वैज्ञानिक नाम
ब्राह्मणी चील का वैज्ञानिक नाम हेलिऐस्टर इंडस (heliyester indus) है । यह पक्षी भारत के अलावा अन्य देश जैसे थाईलैंड मलय चीन और ऑस्ट्रेलिया में भी पाए जाते हैं । यह पक्षी खासकर समुद्र के बंदरगाहों के आसपास ही पाए जाते हैं ।
इनका प्रजननकाल क्या हैं
इनका प्रजनन काल दिसंबर से मार्च होता । यह अपनी घोंसले के प्रति निष्ठावान होता है और तिनकों और पत्तों की मदद से अपना घोंसला बनाता है और जल्दी घोंसला छोड़ना नहीं चाहते और लंबे समय तक वह घोंसलें में रहना पसंद करते हैं । पानी की कमी आने पर अपना घोंसला पानी वाली जगह पर बना लेते हैं ।
क्या होती हैं लंबाई
यह 19 इंच लंबाई का पंछी हैं । जिसका रंग कत्थई और सिर तथा सीने का रंग सफेद होता है, लंबी चोंच रहती है और नीचे की ओर दबी दबी हुई झुकी हुई रहती है ।
इसकी बोली अत्यंत कर्कश होती है। यह अपना घोंसला पानी के निकट ही पेड़ की की डाल पर बनाती है और यदि पानी की एक जगह पर कमी आ जाती है तो ये अपना घोंसला पानी वाली जगह पर बना लेती हैं । एक बार में मादा दो या तीन अंडे देती है।
चमगादड़-खरगोश का भी शिकार
यह मुख्य रूप से एक मुर्दा खोर पक्षी जो की मरी हुई एक कैंकरे मछली टिड्डा को खाता है और दलदली भूमि और झीलों के निकट पानी वाली जगह पर रहना पसंद करता है । लेकिन कभी-कभी चमगादर और खरगोश को जीवित रूप में ही शिकार कर लेता है ।कभी-कभी यह दूसरे पक्षियों का शिकार भी चुरा कर खा लेता है ।
ब्राह्मणी चील (brahmini kite) जो कि मुख्यतः भारत के दक्षिण हिस्से में पाई जाती है यह कर्नाटक तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है । यह वही स्थान पर रहना पसंद करती हैं जहां पर पानी की मात्रा अधिक हो ।
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| Image source : birding.in |
Facts about kite
चील के बारे में अनसुने तथ्य
ब्राह्मणी चील नाम कैसे पड़ा
इनका जिक्र मैथली दो बहिनो की कथा में इसके बारे में जिक्र के कारण इस चील का नाम ब्राह्मणी पड़ गया। यह दक्षिण भारत का पक्षी है जो कि पानी वाली जगह पर रहना पसंद करता है ।
क्या है ब्राह्मणी चील का वैज्ञानिक नाम
ब्राह्मणी चील का वैज्ञानिक नाम हेलिऐस्टर इंडस (heliyester indus) है । यह पक्षी भारत के अलावा अन्य देश जैसे थाईलैंड मलय चीन और ऑस्ट्रेलिया में भी पाए जाते हैं । यह पक्षी खासकर समुद्र के बंदरगाहों के आसपास ही पाए जाते हैं ।
इनका प्रजननकाल क्या हैं
इनका प्रजनन काल दिसंबर से मार्च होता । यह अपनी घोंसले के प्रति निष्ठावान होता है और तिनकों और पत्तों की मदद से अपना घोंसला बनाता है और जल्दी घोंसला छोड़ना नहीं चाहते और लंबे समय तक वह घोंसलें में रहना पसंद करते हैं । पानी की कमी आने पर अपना घोंसला पानी वाली जगह पर बना लेते हैं ।
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| Image source : ebird.org |
यह 19 इंच लंबाई का पंछी हैं । जिसका रंग कत्थई और सिर तथा सीने का रंग सफेद होता है, लंबी चोंच रहती है और नीचे की ओर दबी दबी हुई झुकी हुई रहती है ।
इसकी बोली अत्यंत कर्कश होती है। यह अपना घोंसला पानी के निकट ही पेड़ की की डाल पर बनाती है और यदि पानी की एक जगह पर कमी आ जाती है तो ये अपना घोंसला पानी वाली जगह पर बना लेती हैं । एक बार में मादा दो या तीन अंडे देती है।
चमगादड़-खरगोश का भी शिकार
यह मुख्य रूप से एक मुर्दा खोर पक्षी जो की मरी हुई एक कैंकरे मछली टिड्डा को खाता है और दलदली भूमि और झीलों के निकट पानी वाली जगह पर रहना पसंद करता है । लेकिन कभी-कभी चमगादर और खरगोश को जीवित रूप में ही शिकार कर लेता है ।कभी-कभी यह दूसरे पक्षियों का शिकार भी चुरा कर खा लेता है ।


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